डी ए वी कॉलेज, पेहवा में वीर शहीद कुशाल सिंह दहिया की शहादत और बाल दिवस पर भावपूर्ण संगोष्ठी, छात्रों में देशभक्ति की लहर

राजेश वर्मा। कुरुक्षेत्र भूमि
पिहोवा,

डीएवी कॉलेज, पेहवा के राजनीति विज्ञान एवं इतिहास विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक प्रेरणादायी संगोष्ठी ने कॉलेज परिसर को देशभक्ति और बाल अधिकारों की भावना से सराबोर कर दिया। अमर शहीद कुशाल सिंह दहिया की शहीदी दिवस तथा बाल दिवस के पावन अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने न केवल इतिहास के गौरवशाली पन्नों को पलटा, बल्कि अपने भविष्य की जिम्मेदारियों को भी गहराई से समझा।

संगोष्ठी की शुरुआत राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर इकबाल सिंह के ओजस्वी उद्बोधन से हुई। उन्होंने वीर शहीद कुशाल सिंह दहिया के अतुलनीय बलिदान की गाथा को इतनी जीवंतता से प्रस्तुत किया कि सभागार में उपस्थित हर छात्र की आंखें नम हो उठीं। प्रो. इकबाल सिंह ने बताया, "सिख इतिहास के स्वर्णिम अध्याय में गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के पश्चात् उनके पवित्र शीश को अमृतसर ले जाने का दायित्व जब भाई जिवन सिंह पर था, तब मुगल सेनाओं ने उनका पीछा किया। सोनीपत जिले के निकट बढ़खालसा गांव पहुंचते ही मुगलों ने गांव को चारों ओर से घेर लिया। उस संकट की घड़ी में एक नवयुवक कुशाल सिंह दहिया ने आगे बढ़कर अपना शीश गुरु जी के शीश के स्थान पर प्रस्तुत कर दिया। यह छलावा मुगलों को धोखा देने के लिए था, ताकि सच्चा शीश सुरक्षित अमृतसर पहुंच सके।"

प्रो. सिंह ने आगे कहा, "जब मुगल बादशाह को सच्चाई का पता चला, तब तक गुरु तेग बहादुर जी का शीश अमृतसर की पावन धरती पर पहुंच चुका था। कुशाल सिंह का यह बलिदान न केवल सिख धर्म की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि हर भारतीय युवा के लिए आत्मोत्सर्ग की मिसाल है। उनका त्याग हमें सिखाता है कि देश और धर्म के लिए जान की बाजी लगाना ही सच्ची वीरता है।" उनके शब्दों ने छात्रों में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित कर दी, और सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

कार्यक्रम के दूसरे चरण में इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर सुखबीर सिंह तथा अंग्रेजी विभाग के सहायक प्रोफेसर अभिषेक ने बाल दिवस के गहन महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. सुखबीर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाल प्रेम को याद करते हुए कहा, "बाल दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों, शिक्षा और सुरक्षा की प्रतिबद्धता का दिन है। नेहरू जी कहा करते थे कि बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं, और हमें उन्हें ऐसा वातावरण देना चाहिए जहां वे स्वतंत्र विचारों के साथ विकसित हों।"

प्रो. अभिषेक ने छात्रों के साथ एक सार्थक संवाद स्थापित किया। उन्होंने कहा, "आज का बाल दिवस हमें याद दिलाता है कि हर बच्चे में एक नेहरू, एक गांधी या एक कुशाल सिंह छिपा है। हमें उनके सपनों को पंख देने हैं।" इसके पश्चात् उन्होंने छात्रों को आमंत्रित किया कि वे अपने विचार साझा करें। एक छात्रा ने कहा, "शहीद कुशाल सिंह की तरह हमें भी अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित होना चाहिए।" दूसरे छात्र ने बाल अधिकारों पर जोर देते हुए कहा, "शिक्षा और खेल हर बच्चे का अधिकार है, हमें इसे सुनिश्चित करना होगा।" यह चर्चा इतनी प्रेरणादायी थी कि छात्रों ने स्वयं आगे बढ़कर बाल कल्याण के लिए अभियान चलाने का संकल्प लिया।

यह आयोजन डीएवी कॉलेज पेहवा की शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक बन गया, जहां इतिहास की गाथाएं और भविष्य की आकांक्षाएं एक सूत्र में बंधीं। निश्चय ही, कुशाल सिंह दहिया का बलिदान और बाल दिवस की भावना आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

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