राजेश वर्मा। कुरुक्षेत्र भूमि
कुरुक्षेत्र,
रोहतक में सैनी शिक्षण संस्थाओं के 75 साल पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रविवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शिरकत की। इस अवसर पर उन्होंने संस्था को अपने निजी कोष से 51 लाख रुपये दान देने की घोषणा की। हालांकि, समारोह में परंपरागत भाषणबाजी और घोषणाओं के बीच हरियाणा के एडेड कॉलेजों की बदहाल स्थिति पर गंभीर सवाल उठे हैं।
हरियाणा में 97 सरकारी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज हैं, जिनके अंतर्गत सैकड़ों शिक्षण संस्थान संचालित हैं। ये संस्थान कभी प्रदेश की उच्च शिक्षा का आधार स्तंभ थे, लेकिन आज इनकी स्थिति डांवाडोल है। सरकार ने एडेड स्कूलों की व्यवस्था को पहले ही समाप्त कर दिया है, और अब एडेड कॉलेजों का भविष्य भी अनिश्चितता के भंवर में फंसा है।
**अफसरशाही का रवैया और सरकारी नीतियां**
डॉ. सुदीप कुमार, जनरल सेक्रेटरी, कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन, हरियाणा, ने बताया कि अफसरशाही लगातार इन कॉलेजों को राजस्व पर बोझ बताकर उनकी सहायता बंद करने की दिशा में काम कर रही है। सरकार और अफसरशाही शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में खर्च को बोझ मानती है, जिसके चलते इन सेवाओं के निजीकरण के प्रयास तेज हो रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि एडेड कॉलेजों की स्थिति बद से बदतर हो रही है।
**कर्मचारियों की अनसुनी मांगें**
एडेड कॉलेजों के कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा। कई बार 3-4 महीने तक वेतन अटक जाता है, जिससे कर्मचारियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है। कर्मचारियों को न तो मेडिकल अलाउंस मिलता है और न ही आयुष्मान कार्ड की सुविधा, क्योंकि वे टैक्सपेयर की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, 2006 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी की सुविधा भी बंद है, जो निजी क्षेत्र में भी उपलब्ध है।
**रिक्त पद और भर्तियों में देरी**
प्रदेश के एडेड कॉलेजों में 50% से अधिक पद रिक्त हैं। प्रिंसिपल के पदों सहित कई महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं। भर्तियां खुलने के बावजूद इन्हें पूरा नहीं किया जा रहा। सरकार ने एक वैधानिक आयोग बनाने की बात कही थी, लेकिन अफसरशाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते यह प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में है। इसका नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष इन कॉलेजों में 50% से अधिक सीटें खाली रह गईं।
**ऐतिहासिक महत्व और योगदान**
डॉ. सुदीप ने बताया कि ये कॉलेज हमारे पूर्वजों ने अपने खून-पसीने की कमाई और व्यक्तिगत संपत्तियों को दान देकर स्थापित किए थे, जब सरकार के पास उच्च शिक्षा संस्थान खोलने के लिए संसाधन नहीं थे। इनमें से कई कॉलेज A और A+ ग्रेड में हैं और सरकारी कॉलेजों से बेहतर आधारभूत संरचना रखते हैं। इन संस्थानों को खड़ा करने में दशकों की मेहनत और करोड़ों रुपये के संसाधन लगे हैं, लेकिन इन्हें बंद करना बेहद आसान समझा जा रहा है।
**मुख्यमंत्री से अपील**
डॉ. सुदीप ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से अपील की कि डेढ़ साल से अधिक के शासन अनुभव के बाद अब उन्हें एक कुशल प्रशासक की भूमिका निभानी चाहिए। केवल भाषणों और घोषणाओं से काम नहीं चलेगा। इन संस्थानों ने कभी सरकार का बोझ उठाया था, और अब इन्हें सरकार की मदद की जरूरत है। उन्होंने मांग की कि सरकार दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाकर इन कॉलेजों के पुनरोद्धार के लिए ठोस कदम उठाए।
**आर्थिक संकट और कर्मचारियों की मजबूरी**
कर्मचारियों को 3-4 महीने तक वेतन न मिलने से उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट है। कर्मचारियों को अपनी ईएमआई, बच्चों की फीस और 18% जीएसटी जैसे खर्चे पूरे करने पड़ते हैं। न तो उनके पास अफसरशाही की तरह अतिरिक्त आय है और न ही वे निजी कोचिंग दे सकते हैं। ऐसे में उनके घरों का खर्च कैसे चलेगा, यह सवाल अनुत्तरित है।
**निष्कर्ष**
एडेड कॉलेजों की बदहाली न केवल कर्मचारियों और छात्रों के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। मुख्यमंत्री से अपेक्षा है कि वे इस दिशा में तत्काल और प्रभावी कदम उठाएं, ताकि ये संस्थान फिर से अपनी खोई हुई गरिमा और उपयोगिता हासिल कर सकें।
*संपर्क: डॉ. सुदीप कुमार, जनरल सेक्रेटरी, कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन, हरियाणा*
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