नवरात्रि में सांझी की परंपरा बढ़ाती है घर की पवित्रता


अभिषेक पूर्णिमा
 

पिहोवा, 29 सितंबर। प्रदेश के गांवों और कस्बों में आज भी नवरात्र के दिनों में घर की दीवारों पर सांझी सजाने की परंपरा जीवित है। यह प्राचीन लोक परंपरा विशेषकर ग्रामीण अंचलों में बड़े उत्साह के साथ निभाई जाती है। महिलाएं और बच्चियां मिलकर गोबर, गेरू, रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और मिट्टी से दीवारों पर मां दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं के स्वरूप सजाती हैं।

        बताया जाता है कि सांझी लगाने की परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि यह ग्रामीण जीवन में सामाजिक मेल-जोल और सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए हुए है। नवरात्र की प्रत्येक संध्या को महिलाएं सांझी के समक्ष गीत गाती हैं और इसकी आरती उतारती हैं।
          वार्ड नंबर 12, भाई जी वाली गली, पिहोवा निवासी महिला संतोष देवी का कहना है कि पहले बहुत से घरों में सांझी सजाई जाती थी, लेकिन अब बदलती जीवनशैली के चलते यह परंपरा धीरे-धीरे कम हो रही है। इसके बावजूद कई गांवों व कस्बो में यह परंपरा आज भी उतनी ही श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जा रही है।

             
 जैसलीन पूर्णिमा ब्यूटी एंड मेकओवर की प्रमुख मीना रानी का मानना है कि सांझी न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि बच्चों को कला, एकता और परंपरा से जोड़ने का भी माध्यम है। यही कारण है कि नवरात्र के पावन अवसर पर दीवारों पर सजी सांझी आज भी हरियाणा की सांस्कृतिक पहचान को जीवंत रखती है।
           रजनी धीमान, सत्या रानी ने बताया कि सांझी का उद्देश्य परिवार की सुख-समृद्धि, बच्चों की लंबी आयु और घर में शांति–सद्भाव की कामना करना है। उन्होंने बताया कि सांझी लगभग पंद्रह दिन तक यानी श्राद्ध पक्ष की समाप्ति से नवरात्रि की नवमी तक लगाई जाती है और फिर दशहरे पर इस सांझी को विधि विधान से जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

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