पिहोवा शहर के उत्तर में सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर प्राचीन काल से वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास

विनोद कुमार पंचौली 
पिहोवा,

 पिहोवा शहर के उत्तर में सरस्वती नदी के उत्तरी तट पर प्राचीन काल से वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर स्थित है मंदिर में बालु लिंग रूप में शिव लिंग स्थित है । वामन पुराण में कहा गया है कि ऋषि वशिष्ठ जी ने यहां पर तपस्या/ शिव उपासना कर इस बालु लिंग को अपने हाथों से स्थापित किया था। 1902 में यहां के थेह की खुदाई में एक सुंदर चौखट प्राप्त हुई थी । जिसे करनाल के तत्कालीन उपायुक्त ने सरस्वती मंदिर के द्वार पर लगवा दिया था।  इस मंदिर के पास बहुत विस्तृत क्षेत्र में थेह फैला था जहां से यदा कदा कहीं भी खंडित मूर्तियां व स्तंभ अवशेष मिलते रहते थे 1980के दशक में यहां का सौंदर्य करण करने के लिए थेह से मलबा हटाने पर अनेक पूर्ण व खंडित मूर्तियां मिली। जिनमें एक अद्भुत आकृति का स्तंभ अवशेष मिला जो आज भी वही मंदिर क्षेत्र में पड़ा हुआ है। लगभग 12साल पहले मित्र फोटो ग्राफर से अवशेषों की फ़ोटो खिंचवा कर उसके कंप्यूटर पर देख रहा था तो उन दिनों मैं हर्ष चरित भी पढ़ रहा था। फोटो देख कर चरित पढ़ते हुए मुझे लगा कि इन सभी क्षेत्रीय मूर्तियों का वर्णन हर्ष चरित में है कि कई दिनों तक दोनों ओर ध्यान दे कर उन मूर्तियों व कथाओं में मिलान किया। 
जब उन मूर्तियों बारे पूरी तरह से तसल्ली हो गई तो पृथुदक पिहोवा की धरोहर विचित्र मूर्तियां नामक पुस्तक लिखी। जिस में  रति प्रिति कामदेव चौखट , हंसवाही विमान ( सरस्वती मंदिर के प्रांगण में ) , सिंह मुख कलश, ब्रह्मा जी , मकर मुख प्रणाल  वशिष्ठेश्वर महादेव मंदिर क्षेत्र में रखें हैं। शिव वर्धन वंश के उपास्य देव थे। बाण भट ने जिस बालु लिंग का वर्णन हर्ष चरित में किया था वह यही शिव लिंग है। इन सभी मूर्तियों का पिहोवा से प्राप्त होना यह सिद्ध करता है कि प्रभाकर वर्धन की राजधानी थानेसर पिहोवा के उत्तर में प्राची क्षेत्र में ही स्थित थी
प्राची तीर्थ का पुराना चित्र व प्राप्त उमा-माहेश्वर की तथा रति प्रिति कामदेव चौखट

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