राजेश वर्मा। कुरुक्षेत्र भूमि
कुरुक्षेत्र/ पिहोवा
हरियाणा सरकार के अधीन चल रहे ऐडिड कॉलेजों में कर्मचारियों के *“आकस्मिक अवकाश, लघु अवकाश एवं विशेष आकस्मिक अवकाश” का मामला एक बार फिर चर्चा में है। सरकार ने वर्ष 2002 में ’हरियाणा एफिलिएटेड कॉलेज लीव रूल्स, 2002’ लागू किए थे, जिनमें विभिन्न प्रकार के अवकाशों के लिए नियम तो बनाए गए, परंतु आश्चर्यजनक रूप से आकस्मिक अवकाश के बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान या दिशा-निर्देश नहीं दिए गए।
इन नियमों की धारा 16(2) में यह उल्लेख अवश्य किया गया है कि “ऐडिड कॉलेजों में कार्यरत कर्मचारियों का “आकस्मिक अवकाश, लघु अवकाश एवं विशेष आकस्मिक अवकाश” निदेशक, उच्चतर शिक्षा विभाग, हरियाणा द्वारा जारी अनुदेशों के अधीन होगा।” लेकिन व्यावहारिक रूप से इन तथाकथित “अनुदेशों” का कोई अस्तित्व आज तक सामने नहीं आया। यानी बीते ’’23 वर्षों’’ से कर्मचारी और कॉलेज प्रशासन, दोनों ही “अनुदेशों की प्रतीक्षा” में हैं।
हरियाणा प्राईवेट कॉलेज नॉन-टीचिंग एम्पलाईज यूनियन के प्रधान ’’श्री विजेंद्र सिंह’’ और कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन के पूर्व महासचिव ’’डॉ. सुदीप कुमार’’ का कहना है कि “यह विडंबना ही कही जाएगी कि उच्चतर शिक्षा विभाग, जो नीति निर्माण और क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है, उसने अब तक इतना भी स्पष्ट नहीं किया कि ऐडिड कॉलेजों के कर्मचारी आकस्मिक अवकाश, लघु अवकाश एवं विशेष आकस्मिक अवकाश के पात्र हैं या नहीं - और यदि हैं, तो कितने।”
उनके अनुसार, “इस अस्पष्टता का सबसे बड़ा खामियाजा कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है। कोई कर्मचारी घर में आपात स्थिति आने पर या किसी आवश्यक कार्य के लिए एक-दो दिन का अवकाश मांगता है, तो कॉलेज प्रशासन के पास कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश न होने के कारण वह उसे देने में हिचकिचाता है। कई बार तो कर्मचारियों को मजबूर होकर ‘अवैतनिक अवकाश’ लेना पड़ता है। यह स्थिति न केवल अनुचित है, बल्कि कर्मचारी मनोबल पर गहरा प्रभाव डालती है।”
गौरतलब है कि हरियाणा सरकार के नियमित कर्मचारियों के लिए ’हरियाणा सिविल सर्विस (लीव) रूल्स, 2016’ के अध्याय 14 में आकस्मिक अवकाश के बारे में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। इनमें महिला कर्मचारियों को विशेष रूप से 25 आकस्मिक अवकाशों की सुविधा दी गई है। परंतु उच्चतर शिक्षा विभाग की “चुप्पी” के कारण ऐडिड कॉलेजों में कार्यरत महिला कर्मचारी इस लाभ से वंचित हैं। प्रशासनिक अस्पष्टता के चलते, जब कोई महिला कर्मचारी इन 25 अवकाशों का उल्लेख करती है, तो कॉलेज प्रशासन यह कहकर इंकार कर देता है कि “इस पर निदेशालय से कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं।”
इस अनिश्चितता का नतीजा यह है कि राज्य भर के लगभग ’’4,000 से अधिक ऐडिड कॉलेज कर्मचारी’’, जिनमें शिक्षक और गैर-शिक्षक दोनों शामिल हैं, आज भी स्पष्ट नियमों के अभाव में “अवकाश की आज़ादी” से वंचित हैं।
कर्मचारी संगठनों ने सरकार से तीखा सवाल किया है कृ “क्या ‘आकस्मिक अवकाश’ के लिए भी अब कैबिनेट नोट बनेगा या 23 साल और इंतज़ार करना पड़ेगा?”
वहीं शिक्षा जगत के जानकार मानते हैं कि यह सिर्फ एक “नियमों की कमी” नहीं, बल्कि ’प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता’ का प्रमाण है। आखिर जब अन्य विभागों में कर्मचारियों के लिए स्पष्ट नियम मौजूद हैं, तो ऐडिड कॉलेजों को इस अधिकार से वंचित रखना किस नीति का हिस्सा है?
कर्मचारी संगठनों ने मांग की है कि उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा तत्काल प्रभाव से ’हरियाणा सिविल सर्विस (लीव) रूल्स, 2016’ की तर्ज पर ऐडिड कॉलेजों के लिए भी ’’आकस्मिक अवकाश, लघु अवकाश और विशेष आकस्मिक अवकाश’’ के स्पष्ट निर्देश जारी करे, ताकि कर्मचारी बिना भय और संकोच के अपने अधिकार का उपयोग कर सकें।
जब “उच्चतर शिक्षा” विभाग ही अपने कर्मचारियों को “आकस्मिक अवकाश, लघु अवकाश एवं विशेष आकस्मिक अवकाश” देने में असमर्थ हो, तो यह शिक्षा का नहीं, प्रशासनिक विडंबना का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। 23 वर्षों से जारी इस मौन ने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा में ’आकस्मिक अवकाश भी अब आकस्मिकता की भेंट चढ़ चुका है।’
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