650 से अधिक प्रतिभागियों ने सामाजिक सुधार और शिक्षा पर चर्चा की
राजेश वर्मा। ब्यूरो चीफ कुरुक्षेत्र भूमि
पेहवा/कुरुक्षेत्र–
डीएवी कॉलेज, पेहवा में स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन और योगदान पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में देशभर से 650 से अधिक शिक्षाविदों, शोधार्थियों और समाजसेवियों ने भाग लिया। संगोष्ठी में स्वामी दयानंद के सामाजिक सुधार, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान पर विस्तृत चर्चा की गई।
मुख्य अतिथि और विद्वानों के विचार
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्री ओमप्रकाश धनखड़ ने अपने संबोधन में कहा,
"स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उनके विचार आज भी समाज को दिशा प्रदान करते हैं और राष्ट्र निर्माण के लिए युवाओं को प्रेरित करते हैं।"
मुख्य वक्ता प्रो. हवा सिंह (पूर्व रजिस्ट्रार, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) ने स्वामी जी की शिक्षाओं को वर्तमान सामाजिक चुनौतियों के समाधान से जोड़ते हुए कहा कि उनके सुधारवादी विचारों को अपनाकर समाज को और प्रगतिशील बनाया जा सकता है।
प्रतिष्ठित विद्वानों की सहभागिता
संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिष्ठित विद्वानों ने स्वामी दयानंद के जीवन और उनके विचारों की आधुनिक प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे। इनमें शामिल थे:
प्रो. रमेश देशवाल – केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़
डॉ. कुलदीप – प्रोफेसर, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
प्रो. अतुल यादव – गवर्नमेंट कॉलेज, अंबाला
प्रो. उर्मिला शर्मा – शिक्षाविद् एवं समाज सुधारक
इन विद्वानों ने आर्य समाज की स्थापना, सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाएँ, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा सुधारों पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी के योगदान को सराहा।
स्वामी दयानंद के प्रमुख योगदान पर हुई चर्चा
संगोष्ठी के दौरान वक्ताओं ने स्वामी दयानंद सरस्वती के विभिन्न सामाजिक एवं शैक्षिक सुधारों पर प्रकाश डाला, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदु शामिल थे:
1. आर्य समाज की स्थापना (1875): स्वामी दयानंद ने समाज को अंधविश्वासों से मुक्त करने और वेदों के शुद्ध ज्ञान को पुनर्स्थापित करने के लिए आर्य समाज की नींव रखी।
2. सत्यार्थ प्रकाश: उनकी कालजयी कृति "सत्यार्थ प्रकाश" ने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया और वैज्ञानिक एवं तार्किक चिंतन को बढ़ावा दिया।
3. शिक्षा सुधार: उन्होंने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित किया और भारतीय संस्कृति को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया।
4. महिला सशक्तिकरण: उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा और जातिवाद जैसी कुरीतियों का विरोध किया तथा नारी शिक्षा को प्रोत्साहित किया।
5. स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव: उनके विचारों से प्रेरित होकर लाला लाजपत राय, भगत सिंह और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया।
कार्यक्रम का आयोजन और विशेष आकर्षण
इस संगोष्ठी का आयोजन डीएवी कॉलेज, पेहवा के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. सुदीप कुमार के नेतृत्व में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार और डीएवी गान के साथ हुई, जिससे माहौल भक्तिमय और प्रेरणादायक बन गया।
इसके बाद, कॉलेज के प्राचार्य ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं की वर्तमान प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में स्वामी जी के विचार आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।
कार्यक्रम का संचालन श्री अश्वनी शर्मा ने अत्यंत कुशलता से किया। पूरे कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच गहन संवाद और विचार-विमर्श हुआ, जिससे संगोष्ठी अत्यंत सफल रही।
समापन और धन्यवाद ज्ञापन
संगोष्ठी के समापन पर डॉ. प्रवीण शर्मा ने सभी उपस्थित अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजनों से समाज को सही दिशा मिलती है और युवा पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक और वैचारिक मूल्यों से जुड़ने का अवसर मिलता है।
निष्कर्ष: एक प्रेरक पहल
यह राष्ट्रीय संगोष्ठी न केवल स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास थी, बल्कि यह समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में उनके सिद्धांतों को लागू करने की दिशा में भी एक सार्थक पहल साबित हुई।
समापन टिप्पणी:
> "स्वामी दयानंद सरस्वती ने समाज को जागरूक करने का जो मार्ग दिखाया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह संगोष्ठी उनके सपनों को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
– डॉ. सुदीप कुमार, आयोजक
इस सफल संगोष्ठी के माध्यम से डीएवी कॉलेज, पेहवा ने यह संदेश दिया कि स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार आज भी समाज को नई दिशा देने में सक्षम हैं।
Tags
पिहोवा