ब्यूरो चीफ राजेश वर्मा। कुरुक्षेत्र भूमि
पिहोवा,
प्लासी के युद्ध के 100 वर्ष बाद भारतीयों का असंतोष सन् 1857 ई. की क्रांति के रूप में विस्फोटित हुआ। बहुत से इतिहासकार सैनिक असंतोष और चर्बी वाले कारतूस को इस विद्रोह का कारण मानते हैं किंतु वास्तविकता ये है कि इसने तो केवल बारूद के ढेर में आग लगाने का कार्य किया था ये विद्रोह तो बहुत से राजनीतिक तथा प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सैनिक कारणों से विस्फोटित हुआ था। धार्मिक हस्तक्षेप ब्रिटिश शासन ने सती प्रथा का उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह जैसी सामाजिक सुधार नीतियाँ लागू कीं, जिन्हें कई भारतीयों ने अपने धर्म में हस्तक्षेप के रूप में देखा।
ईसाई मिशनरियों की बढ़ती गतिविधियों से हिंदू और मुस्लिम समुदायों में धर्मांतरण का भय उत्पन्न हुआ। भारतीय सिपाहियों को ब्रिटिश सिपाहियों की तुलना में कम वेतन और पदोन्नति के अवसर मिलते थे। इसके अलावा, उन्हें अपने क्षेत्र से दूर सेवा करने के लिए मजबूर किया जाता था, जो उनके धार्मिक विश्वासों के खिलाफ था।
नई एनफील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी के इस्तेमाल की अफवाहें फैलीं, जिससे हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं। इस विवाद ने विद्रोह की चिंगारी को भड़काया।
बैरकपुर छावनी के सैनिक मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 अंग्रेज सैनिक अधिकारी सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन और लेफ्टिनेंट बीएच बो की हत्या कर विद्रोह की शुरूआत की थी। 8 अप्रैल को मंगल पांडे को फांसी दी गई। इस क्रांति का वह पहले शहिद था।
10 मई 1857 को अंबाला और मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसके बाद विद्रोह दिल्ली, कानपुर, झाँसी, लखनऊ और अन्य क्षेत्रों में फैल गया। बहादुर शाह ज़फ़र को विद्रोहियों ने भारत का सम्राट घोषित किया।
1857 ई. का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, असफल हो गया ये भारत का दुर्भाग्य ही था कि इसमें कुछ भारतीयों ने एकता का परिचय नहीं दिया, सिक्ख, राजपूत तथा मराठों ने अंग्रेजों का साथ दिया एवं अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह का बड़ी निर्दयतापूर्वक दमन कर दिया गया किंतु इस क्रांति ने हमारी राष्ट्रीय जीवन शैली जो पुरातन से चली आ रही थी, उसे एक नया मोड़ अवश्य ही दिया था। 1857 ई. की क्रांति इतिहास में युगांतकारी घटना है जिससे एक नवीन युग का आरंभ होता दिखाई दिया अर्थात् भारतीयों में स्वराज्य प्राप्ति की भावना जाग्रत हुई, अंग्रेजों का भारतीयों से विश्वास हट गया उन्होंने सेना में भी अंग्रेजों की संख्या बढ़ा दी, तोपखाने में, अंग्रेज अधिकारी अंग्रेजी शिक्षा अधिक प्रचार-प्रसार करने लगे एवं इस विद्रोह से अंग्रेजों एवं भारतीयों के बीच की खाई और अधिक गहरी हुई, इसमें भाग लेने वालों को विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया गया। इस विद्रोह से अंग्रेजों को अधिक हानि हुई विद्रोह ने राष्ट्रीय आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया। अतः राष्ट्रीय एकता संगठन व आंदोलन का एक नवीन युग प्रारंभ हुआ जिसमें 1885 ने राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, 1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1942 भारत छोड़ो आंदोलन एवं अंतिम समय में सफलता मिली और अंग्रेज लुटेरों को भारत से 15 अगस्त 1947 को जाना पड़ा, अंततः जिस क्रांति की शुरूआत मंगल पांडे द्वारा हुई उसे चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस के बलिदान व गांधीजी ने अंतिम रूप दिया था।
सुखबीर,
सहायक प्रोफेसर,
डी.ए.वी. कॉलेज, पेहवा ( कुरुक्षेत्र)
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