ब्यूरो चीफ राजेश वर्मा। कुरुक्षेत्र भूमि
पिहोवा,
पिहोवा को पवित्र माना जाता है, और कुरुक्षेत्र से भी अधिक पवित्र सरस्वती नदी है। सरस्वती नदी के भी अनेक तीर्थ हैं, इन सब में पिहोवा तीर्थ सर्वश्रेष्ठ है। सरस्वती के बारे में वामन पुराण में पढ़ने को मिलता है। गंगा, यमुना, नर्मदा, सिंधु इन चारों नदियों के स्नान का फल अकेले पिहोवा में ही प्राप्त हो जाता है। सरस्वती का जल पीने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंत्र शास्त्र के अनुसार सरस्वती का जल पीने का इतना महत्व है कि बारह मास तक संयम-नियम से जो श्रद्धालु सरस्वती का जल पीता है, उसे वैसे कवित्व-शक्ति की प्राप्ति होती है, जैसे देवगुरु बृहस्पति को हुई थी। वामन पुराण में चेतावनी दी गई है कि जिन लोगों ने पिहोवा तीर्थ का नाम कानों से नहीं सुना, अपनी आंखों से नहीं देखा, मन से पिहोवा को याद नहीं किया, ऐसे लोगों के पितर पितृलोक में बैठे हुए कहते हैं कि हमारे पुत्र-पौत्रादिकों ने व्यर्थ में जन्म लिया है। ऐसी संतानों को धिक्कार है। इसी पिहोवा में गाधि राजा के पुत्र विश्वामित्र ने क्षत्रिय से ब्राह्मण का दर्जा प्राप्त किया। यही वह तीर्थ है, जिसमें मुनिश्रेष्ठ रुषंग ऋषि अपने पुत्रों के साथ गंगा-तट हरिद्वार को छोड़कर मोक्ष-प्राप्ति के लिए आए थे। यहीं पर ब्राह्मणश्रेष्ठ आख्रष्टषेण मुनि को तप करते हुए वांछित सिद्धि प्राप्त हुई। इसी तीर्थ में राजा ययाति ने 100 यज्ञ किए थे। इसी तीर्थ में बकदाल5य ऋषि व ब्रह्मा-पुत्र वशिष्ठ को सिद्धि मिली। यहीं पर देव-सेनापति स्वामी कार्तिकेय अपने असंख्य गणों के साथ रात-दिन निवास करते हैं। यहां पर कार्तिकेय का प्राचीन मंदिर है। रुषंग ऋषि ने अपने पुत्रों को पिहोवा का महत्व इस प्रकार बताया है, हे पुत्रो! जो मनुष्य सरस्वती के तट पर स्थित पिहोवा पर जप करते हुए शरीर छोड़ता है, वह जन्म-मरण से रहित होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। गंगा के जल में अस्थि-प्रवाह से मुक्ति होती है, काशी में देह-त्याग से मुक्ति होती है, किंतु पिहोवा तीर्थ में जल, स्थल व अंतरिक्ष आदि पर मृत्यु होने पर भी मोक्ष मिलता है, यानी कि पिहोवा गंगा-द्वार से भी अधिक पवित्र व महत्वपूर्ण है।
इस पौराणिक तीर्थ का महत्व इस कारण भी है कि इस तीर्थ की रचना भी प्रजापति ब्रह्मा ने पृथ्वी, जल, वायु और आकाश समेत की है। वामन पुराण के अनुसार अति पुरातन काल में भगवान शंकर ने पिहोवा में पधारकर स्नान किया था। यहां पर पिंडदान का बड़ा महत्व माना गया है। और तो और भगवान इंद्र ने भी अपने पितरों का पिंडदान इसी तीर्थ पर किया था। इस तीर्थ का नाम राजा पृथु के नाम पर पड़ा। यहीं सरस्वती के तट पर पृथु ने पिता की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार व पिंडदान तथा समस्त प्राणियों को जल प्रदान करने से संतुष्ट किया। इसी कारण इस तीर्थ का नाम पृथूदक अथवा पिहोवा पड़ा। महाभारत के अनुसार यहां स्नान व पिंडदान करने से श्रद्धालु व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ का फल तो मिलता ही है, स्वर्ग लोक भी मिल जाता है। वामन पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति सरस्वती के उत्तरी तट पर पिहोवा में जप करता हुआ अपना शरीर छोड़ता है, उसे निश्चित रूप से अमरत्व की प्राप्ति होती है। पिहोवा के पवित्रतम सरस्वती तीर्थ सरोवर के तट पर पितरों का पिंडदान किया जाता है। य पिहोवा का मुख्य तीर्थ सरस्वती सरोवर है। इसी के जल में लोग नहाते हैं।भारत बर्ष से लोग अपने पितरों की सद्गति के लिए वर्षभर यहां आते रहते हैं।