राजेश वर्मा।
पिहोवा,
उत्तर भारत के प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक शिव मंदिर श्री संगमेश्वर धाम अरूणाय में महाशिवरात्रि का पर्व आज बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन मंदिर पसिर के आसपास मेले जैसा माहौल देखने को मिलता है। मंदिर के सेवा दल प्रबंधक भूषण गौतम ने जानकारी देते हुए बताया कि श्री पंचायती अखाडा महानिर्वाणी कनखल के सचिव महंत रविंद्र पुरी, महंत विश्वनाथ गिरि एवं मंदिर प्रबंधन के सहयोग से महाशिवरात्रि के पर्व पर विभिन्न प्रांतों से मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुख-सुविधाओं के प्रबंधों की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। उन्होंने बताया कि भारी तादाद में आने वाले श्रद्धालुओं की सहूलियत को देखते हुए मुय द्वार के साथ लगने वाले झूलों व बाजार आदि की व्यवस्था इस बार निकासी गेट के नजदीक की गई है ताकि अत्याधिक भीड़ न हो। यातायात व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिए 4 एकड़ जमीन में पार्किंग तथा यात्रियों की सुविधा के लिए अस्थाई शौचालय बनाए गए है।
किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस बल व अग्रिशमन गाडिय़ों का इंतजाम करने के लिए सबंधित विभाग को लिखित में सूचना दे दी गई है। श्रद्धालुओं के भोजन व आवास की व्यवस्था मंदिर की ओर से निशुल्क की जाएगी। इस पावन पर्व पर मेला क्षेत्र में लगने वाले फ्री मैडिकल कैंप में दिव्यांगो के लिए व्हील चेयर तथा आपातकालीन सेवा के लिए एंबुलेंस वाहन आदि की व्यवस्था की गई है। शिव भक्तों द्वारा मेला क्षेत्र में लगाए जाने वाले भंडारों की व्यवस्था पूरी हो चुकी है। यात्रियों की सुविधा के लिए लगभग 350 सेवादल के सदस्यों को डयूटी पर तैनात किया गया है। पूरे मेला क्षेत्र को सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी सुविधा से लैस किया गया है। इस पावन पर्व पर हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, राजस्थान व दिल्ली सहित देश के कोने-कोने से लाखों शिव भक्त अपने सुखमय जीवन की कामना लेकर पहुंचते है। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि को 31 किलो भस्म से भगवान शिव का भस्माभिषेक किया जाएगा।
भूषण गौतम ने बताया कि आज मंदिर परिसर में सात जरूरतमंद कन्याओं के हाथ पीले किए गए। मंदिर प्रबंधन की ओर से सभी नव विवाहिताओं को दैनिक प्रयोग का सामान जैसे बैड़, बर्तन, कपड़े व सोने तथा चांदी के गहने उपहार स्वरूप दिए गए। इस मौके पर मुयातिथि के रूप में पहुंचे नगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डा. अवनीत सिंह वडै़च ने कहा कि किसी जरूरतमंद की सहायता करना धरती का सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। श्री संगमेश्वर धाम मंदिर प्रबंधन सदैव समाज भलाई के कार्यो में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। शुक्रवार को मंदिर परिसर में एक मैडिकल कैंप का भी आयोजन किया जा रहा है जिसके लिए सैंकड़ो रक्तदाताओं ने रक्तदान के लिए अपना नाम पंजीकृत करवाया है।
शिवलिंग से लिपटता है नाग-नागिन का जोड़ा
कहा जाता है कि मंदिर में अक्सर आकर नाग-नागिन का जोड़ा शिवलिंग से लिपटता है लेकिन किसी भी श्रद्धालु को नुकसान नहीं पहुंचाता। पं. शंभू दत्त गौतम का कहना है कि नाग-नागिन यहां आकर शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। वहीं पुराणों के अनुसार यहां भगवान शिव स्वयं शिवलिंग के रुप में प्रकट हुए थे, जोकि सदियों से यहां विराजमान हैं।
मंदिर में पूजा का महत्व
श्री पंचायती अखाडा महानिर्वाणी के महंत विश्वनाथ गिरि के अनुसार संगमेश्वर महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जोकि ऋषि मुनियों की कठोर तपस्या के फल स्वरूप धरती से निकले हैं। श्रद्धालुओं की भक्ति से भगवान शिव जल्दी ही प्रसन्न होते है। कई प्रकार के द्रव्य जैसे जल, गन्ने का रस, दूध, शहद, गिलोये, बेल का रस व गंगाजल आदि से शिवलिंग का अखंड अभिषेक किया जाता है। हर माह की त्रयोदशी पर भी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
राजनीतिज्ञ व व्यापारी भी आते हैं माथा टेकने
श्रद्धालुओं की मान्यता हैं कि स्वयंभू शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, जो भी श्रद्धालु यहां पर पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है, उसके सभी काम बनते हैं। यह मंदिर राजनेताओं व व्यापारियों का भी आस्था का केंद्र हैं। चुनाव के समय बहुत से नेता यहां मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर यहां पूजन करने व धागा खोलने के लिए आते हैं। मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है की यहां देवी सरस्वती ने श्राप मुक्ति के लिए शिव-आराधना की थी।
मंदिर का इतिहास
सेवादल प्रबंधक भूषण गौतम ने बताया कि पुरातन काल में यह तीर्थ अरुणा संगम तीर्थ के नाम से भी जाना जाता रहा है जिसकी महिमा महाभारत कालीन वामन-पुराण, गरूड पुराण, सकंद पुराण, पदम पुराण आदि ग्रंथों में वर्णित है। मंदिर के विषय में एक लोक कथा है कि ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र में जब अपनी श्रेष्ठता साबित करने की जंग हुई, तब ऋषि विश्वामित्र ने मां सरस्वती की सहायता से बहा कर लाए गए ऋषि वशिष्ठ को मारने के लिए शस्त्र उठाया, तभी मां सरस्वती ऋषि विशिष्ट को वापस बहा कर ले गई। तब ऋषि विश्वामित्र ने सरस्वती को रक्त व पीप सहित बहने का श्राप दिया। इससे मुक्ति पाने के लिए सरस्वती ने भगवान शंकर की तपस्या की और भगवान शंकर के आशीर्वाद से प्रेरित 88 हजार ऋषियों ने यज्ञ द्वारा अरूणा नदी व सरस्वती का संगम कराया। तब इस श्राप से सरस्वती को मुक्ति मिली। नदियों के संगम से भोले नाथ संगमेश्वर महादेव के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुए।